Story #Coronavirus: ताजी हवा का झौंका निशिता नहीं जानती थी
निशिता नहीं जानती थी कि आने वाले दिनों में ऊँट किस करवट बैठगा... लेकिन हाल फिलहाल वह बोरिंग हो रही जिंदगी में अनायास आए इस ताजी हवा के झौंके का स्वागत करने का मानस बना चुकी थी.
ताजी हवा का झौंका |
इंजी. आशा शर्मा |
पहले जनता कर्फ्यू… फिर लॉकडाउन… और अब ये पूरा कर्फ्यू… समझ में नहीं आता कि टाइमपास कैसे करें…” निशिता ने पति कमल से कहा.
“पहले तो रोना ये था कि समय नहीं मिल रहा… अब मिल रहा है तो समस्या है कि इसे बिताया कैसे जाये…” कमल ने हाँ में हाँ मिलाई.
निशिता और कमल मुंबई की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करते हैं. सुबह से लेकर रात तक घड़ी की सुइयों को पकड़ने की कोशिश करता यह जोड़ा आखिर में समय से हार ही जाता है. पैसा कमाने के बावजूद उसे खर्च न कर पाने का दर्द अक्सर उनकी बातचीत का मुख्य भाग होता है.
मुंबई में अपना फ्लैट… गाड़ी… और अन्य सभी सुविधाएं होने के बाद भी उन्हें आराम करने का समय नहीं मिल पाता… टार्गेट पूरे करने के लिए अक्सर ऑफिस का काम भी घर लाना पड़ जाता है. ऐसे में प्यार भला कैसे हो… लेकिन यह भी एक भौतिक आवश्यकता है. इसलिए इन्हें प्यार करने के लिए वीकेंड निर्धारित करना पड़ रहा है. लेकिन पिछले दिनों फैली इस महामारी यानी कोरोना के कहर ने दिनचर्या एक झटके में ही बदल कर रख दी. अन्य लोगों की तरह निशिता और कमल भी घर में कैद होकर रह गए.
“क्या करें… कुछ समझ में नहीं आ रहा. पहाड़ सा दिन खिसके नहीं खिसकता…” निशिता ने लिखा.
“अरे तो बेबी! समय का सदुपयोग करो… प्यार करो ना…” सहेली ने आँख दबाती इमोजी के साथ रिप्लाइ किया.
“अब एक ही काम को कितना किया जाये… कोई लिमिट भी तो हो…” निशिता ने भी वैसे ही मूड में चैट आगे बढ़ाई.
“सो तो है.” इस बार टेक्स्ट के साथ उदास इमोजी आई.
“ये तो शुक्र है कि बच्चे नहीं हैं. वरना अपने साथ-साथ उन्हें भी व्यस्त रखने की कवायद में जुटना पड़ता.” निशिता ने आगे लिखा.
“बात तो तुम्हारी सौ टका सही है यारा… अच्छा एक बात बता… एक ही आदमी की शक्ल देखकर क्या तुम बोर नहीं हो रही?” सहेली ने ढेर सारी इमोजी के साथ लिखा तो निशिता ने भी जवाब में ढेरों इमोजी चिपका दी.
सहेली से तो चैट खत्म हो गई लेकिन निशिता के दिमाग में कीड़ा कुलबुलाने लगा. अभी तो महज तीन-चार दिन ही बीते हैं और वह नोटिस कर रही है कि कमल से उसकी झड़प होते-होते बस किसी तरह रुकी है लेकिन एक तनाव तो उनके बीच पसर ही जाता है.
कहते हैं कि बाहरी कारक दैनिक जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करते हैं. शायद यही कारण है कि लॉकडाउन और कर्फ्यू का तनाव उनके आपसी रिश्तों को प्रभावित कर रहा है. लेकिन इस समस्या का अभी निकट भविष्य में तो कोई समाधान दिखाई नहीं दे रहा.
“कहीं ऐसा न हो कि समस्या के समाधान से पहले उनका रिश्ता ही कोई समस्या बन जाये… दिन-रात एक साथ रहते-रहते कहीं वे अलग होने का फैसला ही न कर बैठें.” निशिता का मन कई तरह की आशंकाओं से घिरने लगा.
“तो क्या किया जाए… घर में रहने के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं… क्यों न जरा दूरियाँ बनाई जाएँ… थोड़ा स्पेस लिया जाए… लेकिन कैसे?” निशिता ने इस दिशा में विचार करना शुरू किया तो टीवी देखना… गाने सुनना… बुक्स पढ़ना… कुकिंग करना… जैसे एक के बाद एक कई सारे समाधान विकल्प के रूप में आने लगे.
“फिलहाल तो सोशल मीडिया पर समय बिताया जाए.” सोचकर निशिता ने महीनों पहले छोड़ा अपना फ़ेसबुक अकाउंट लोगइन किया. ढेरों नोटिफ़िकेशन आए हुये थे और दर्जनों फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट… एक-एककर देखना शुरू किया तो मेहुल नाम की रिक्वेस्ट देखकर चौंक गई. आईडी खोलकर प्रोफ़ाइल देखी तो एक मुस्कान होठों पर तैर गई.
“कहाँ थे जनाब इतने दिन… आखिर याद आ ही गई हमारी…” मन ही मन सोचते हुये निशिता ने उसकी दोस्ती स्वीकार कर ली.
मेहुल… उसका कॉलेज फ्रेंड… जितना हैंडसम… उतना ही ज़हीन… कॉलेज का हीरो… लड़कियों के दिलों की धड़कन… लेकिन कोई नहीं जानता था कि मेहुल के दिल का काँटा किस पर अटका है. निशिता अपनेआप को बेहद खास समझती थी क्योंकि वह मेहुल के बहुत नजदीकी दोस्तों में हुआ करती थी. हालाँकि मेहुल ने कभी इकरार नहीं किया था और निशिता कि तो पहल का सवाल ही नहीं था लेकिन चाहत की चिंगारी तो दोनों के दिल में सुलग ही रही थी.
“कहीं वह इस राख़ में दबी चिंगारी को हवा तो नहीं दे रही…” निशिता ने एक पल को सोचा लेकिन अगले ही पल चैट हैड पर मेहुल को एक्टिव देखकर उसने अपने दिमाग को झटक दिया.
“लॉकडाउन में कुछ तो अच्छा हुआ.” मेहुल का मैसेज स्क्रीन पर उभरा. निशिता का दिल धड़क उठा. ऐसा तो कॉलेज के समय भी नहीं धड़कता था.
इसके बाद शुरू हुआ चैट का सिलसिला जो कॉलेज की चटपटी बातों से होता हुआ जीवनसाथी की किटकिटी पर ही समाप्त हुआ और वह भी तभी थमा जब कमल ने लंच का याद दिलाया. निशिता बेमन से उठकर रसोई में गई और जैसा-तैसा कुछ बना… खाकर… वापस मोबाइल पर चिपक गई.
बहुत देर इंतज़ार के बाद भी जब मेहुल ऑनलाइन नहीं दिखा तो वह निराश होकर लेट गई. खाने का असर था, जल्दी ही नींद भी आ गई. उठी तो कमल चाय का कप हाथ में लिए खड़ा था. निशिता ने एक हाथ में कप और दूसरे में मोबाइल थाम लिया. मेहुल का मैसेज देखते ही नींद कि खुमारी उड़ गई.
फिर वही देर शाम तक बातों का सिलसिला. मेहुल उससे नंबर माँग रहा था बात करने के लिए लेकिन निशिता ने उसे लॉकडाउन पीरियड तक टाल दिया. वह नहीं चाहती थी कि कमल को इस रिश्ते का जरा सा भी आभास हो. यूं भी इस तरह के रिश्ते तिजोरी में सहेजे जाने के लिए ही होते हैं. इनका खुले में जाहिर होना चोरों को आमंत्रण देने जैसा ही होता है. यानी आ बैल मुझे मार…
निशिता यह खतरा नहीं उठाना चाहती थी. वह तो इस कठिन समय को आसानी से बिताने के लिए कोई रोमांचक विकल्प तलाश रही थी जो उसे सहज ही मिल गया था. लेकिन इस आभासी रिश्ते के चक्कर में वह अपनी असल जिंदगी में कोई दूरगामी तूफान नहीं चाहती थी.
निशिता नहीं जानती थी कि आने वाले दिनों में ऊँट किस करवट बैठगा… लेकिन हाल फिलहाल वह बोरिंग हो रही जिंदगी में अनायास आए इस ताजी हवा के झौंके का स्वागत करने का मानस बना चुकी थी.