तलाश एक कहानी की
कुरसी पर खाली बैठाबैठा बस कई दिनों से कोई अदद कहानी लिखने की सोच रहा था, लेकिन किसी कहानी का कोई सिरा पकड़ में ही नहीं आ रहा था. कभी एक विषय ध्यान में आता, फिर दूसरातीसरा, चौथा. लेकिन अंजाम तक कोई नहीं पहुंच रहा था. यह लिखने की बीमारी भी ऐसी है कि बिना लिखे रहा भी तो नहीं जाता.
तलाश एक कहानी की |
Writer- कुमुद कुमार
तभी मोबाइल की घंटी बजी. स्क्रीन पर देखा तो अज्ञात नंबर…
‘‘हैलो…’’
‘‘जी हैलो…’’
दूसरी ओर से आई आवाज किसी औरत की थी. मैं ने पूछा,‘‘कौन मुहतरमा बोल रही हैं?’’
‘‘जी, मैं वृंदा, किरतपुर से. क्या मोहनजी से बात हो सकती है?’’
‘‘जी, बताइए. मोहन ही बोल रहा हूं.’’
‘‘जी, बात यह थी कि मैं भी कहानीकविताएं लिखती हूं. आप के दोस्त प्रीतम ने आप का नंबर दिया था. आप का मार्गदर्शन चाहती हूं.’’
‘‘क्या आप नवोदित लेखिका हैं?’’
‘‘हां जी, लेकिन लिखने की बहुत शौकीन हूं.’’
‘‘वृंदाजी, आप ऐसा करें कि अभी आप स्थानीय पत्रपत्रिकाओं में अपनी रचनाएं प्रकाशन के लिए भेजें. जब आत्मविश्वास बढ़ जाए तो राष्ट्रीय स्तर की पत्रपत्रिकाओं में अपनी रचनाएं भेजें. और हां, अच्छा साहित्य खूब पढ़ें, ’’ यह कहते हुए वृंदा को मैं ने कुछ पत्रपत्रिकाओं के नामपते बता दिए. पत्रपत्रिकाओं में लिखने का तरीका भी बता दिया.
इस औपचारिक वार्तालाप के बाद मैं ने वृंदा का नंबर उस के नाम से सेव कर लिया. यह हमारा वाट्सऐप नंबर भी था. ‘माई स्टेटस’ पर उस की पोस्ट आने लगी. यदाकदा मैं भी उस की पोस्ट देख और पढ़ लेता. इसी से पता चला कि वृंदा 2 बच्चों की मां है और किसी सरकारी स्कूल में प्रधानाध्यापिका है. वृंदा की पोस्ट में सुंदर साहित्यिक कविताएं होतीं. मैं उन्हें पढ़ कर काफी प्रभावित होता. एक नवोदित रचनाकार इतनी सुंदर और ऐसी साहित्यिक रचनाएं लिखे तो गर्व होना स्वाभाविक था.
वृंदा की रचनाओं के विषय के अनुसार मैं ने उसे कुछ पत्रिकाओं में प्रकाशन के लिए प्रेषित करने की सलाह दी. कोई रचना मुझे ज्यादा ही पसंद आती तो मैं उस पर उसी के अनुरूप अपना कमैंट भी लिख भेजता.
धीरेधीरे वृंदा की रचनाएं रुमानियत के सांचे में ढलने लगी. प्रेम के अलाव की तपिश में पकने लगी. उन से इश्क का धुआं उठने लगा और मोहब्बत का माहौल बनने लगा. उन्हें पढ़ कर ऐसा एहसास होता कि वे दिल में उतर रही हैं. उन्हें पढ़ कर आनंद की अनुभूति तो होती फिर भी मैं ऐसी रचनाओं पर अपने कमैंट देने से बचता.
एक दिन वृंदा ने अपनी कोई पुरस्कृत रचना मेरे वाट्सऐप पर प्रेषित की और उस पर मेरी टिप्पणी मांगी. रचना वाकई काबिलेतारीफ थी. मैं ने उस पर अपनी संतुलित टिप्पणी भेज दी. इस के बाद मेरी रुचि वृंदा की रचनाओं में जाग्रत होने लगी. उस की रचनाओं में एक कशिश भी थी जो उन को पढ़ने को मजबूर करती थी. उन की रुमानियत दिल को छू लेती. उन को पढ़ कर कोई मुश्किल से ही अपनेआप को उन पर कमैंट देने से रोक सकता था. हर रचना ऐसी होती जैसे पढ़ने वाले के लिए ही लिखी गई हो. कर्ई बार तो वृंदा की रचनाएं इतनी व्यक्तिगत होतीं कि उन्हें पढ़ कर लगता कि निश्चित ही वह किसी की मोहब्बत के सागर में गोते लगा रही है.
एक दिन मैं ने वृंदा को मैसेज भेजा, ‘‘वृंदा, इतनी भावना प्रधान रचनाएं कैसे लिख लेती हो?’’
जवाब तुरंत हाजिर था, ‘‘प्रेम.’’
इस ढाई आखर के प्रेम के साथ 2 प्यारे इमोजी बने हुए थे. मैं अचंभित था कि कोई शादीशुदा महिला किसी अपरिचित से व्यक्ति के सामने इतनी शीघ्रता से कैसे अपने प्रेम का प्रकटीकरण कर सकती है. मन में एकसाथ अनेक सवाल उठ खड़े हुए. कौन है वह खुशनसीब जिस के प्यार में वृंदा डूबी हुई है? क्या वह अपने परिवार में खुश नहीं जो उसे प्रेम की तलाश कहीं और करनी पड़ रही है? उस का पति भी तो इस की पोस्ट पढ़ता होगा? शायद नहीं. नहीं तो अब तक बवंडर हो गया होता. वृंदा की पोस्ट ही इतनी इश्किया थी.
अंत में जेहन में एक सवाल और उठा. यह वृंदा कहीं मुझ से तो…यह सोचते ही मेरे चेहरे पर मुसकान खिल उठी. आदमी की आदत कि वह खयाली पुलाव पकापका कर खुश होता रहता है. इतनी खूबसूरत महिला को मुझ से इश्क हो जाए, तो कहना ही क्या? तभी मुझे अपने परिवार का खयाल आया और मन में खटास उत्पन्न हो गई. लेकिन यह पहेली पहेली ही रही कि वृंदा किस पर फिदा है. वृंदा के इश्किया मिजाज को देखते हुए अपना मन भी इश्किया हो उठा. अब मैं उस की पोस्ट पर कमैंट देते समय इश्किया शब्दों का प्रयोग करने लगा. इस कमबख्त इश्क का मिजाज ही ऐसा होता है, न उम्र देखता है, न रंग देखता है, बस सब को अपने रंग में रंग लेता है. बड़ेबड़े रसूखदार, इज्जतदार इश्क के परवाने बन प्रेम की शमां में यों ही न भस्म हो बैठे. हम भी इश्किया परवाने बन प्रेम की शमां पर जलने को बेचैन हो उठे. हम ने भी शर्मलिहाज छोड़ वृंदा की पोस्टों पर एक से बढ़ कर एक इश्कियां कमैंट दे मारे.
वृंदा समझ गर्ई कि हम पर इश्क का भूत सवार हो रहा था. हमारा इश्किया भूत उतारने के मकसद से या फिर किसी और सिरफिरे को ठीक करने के लिए एक दिन उस ने एक चुटकुला पोस्ट किया-
लङका लङकी से : क्या तुम्हारा कोर्ई पुरुष मित्र है?
लङकी : हां, है.
लङका : तुम इतनी खूबसूरत हो मुहतरमा कि तुम्हारे 2 पुरुष मित्र होने चाहिए.
लङकी : मेरे 3 पुरुष मित्र हैं और तुम्हें अपना पुरुष मित्र बना कर मैं उन तीनों को धोखा देना नहीं चाहती.
वृंदा ने उस चुटकुले के नीचे 3 हंसते हुए इमोजी भी बना रखे थे. मुझे लगा यह मेरे लिए ही संकेत है और वृंदा के पहले से ही कुछ पुरुष मित्र हैं. मैं ने उस के इस चुटकुले पर कोई कमैंट तो नहीं लिखा लेकिन जैसे को तैसा जवाब देने की तर्ज पर 5 हंसते हुए इमोजी जवाब में भेज दिए. किसी औरत के दिल को जलाने के लिए इस से बेहतर तरीका नहीं हो सकता. उस ने मेरे 5 इमोजी का अर्थ यह लगाया कि मेरी 5 महिला मित्र हैं. इस से आहत हो वृंदा ने अगले 2-3 दिनों तक कोई पोस्ट नहीं भेजी. लगता था वह सौतिया डांट से पीङित हो गई.
इस के बाद वृंदा की पोस्ट रूमानी होने के बजाय गमगीन और पलायनवादी हो गई. वह अपनी पोस्ट के जरीए यह दर्शाने लगी कि वह दुनिया की सब से दुखी औरत है. घर में तो उसे एक क्षण का चैन नहीं, स्कूल में आ कर ही उसे कुछ राहत मिलती है. अब मैं उस की पोस्ट पढ़ तो लेता था लेकिन कमैंट देना बिलकुल बंद कर दिया क्योंकि जरूरी नहीं था कि उस की पोस्ट मेरे लिए थी.
एक दिन 10 बजे के आसपास वृंदा ने एक बड़ी ही दुखभरी पोस्ट प्रेषित की, ‘छोड़ जाऊंगी तेरे आसपास, मैं खुद को इस तरह, रोज तिनकेतिनके सा…’
यह ऐसी पोस्ट थी जिसे पढ़ कर किसी भी आशिक का दिल पिघल सकता था. लेकिन यहां तो आशिक का ही पता नहीं था. इसलिए मेरे लिए संवेदना प्रकट करने का कोई सवाल ही नहीं था. महबूबामहबूब के प्रेम से धोखा खा कर इतनी आहत नहीं होती है जितनी उस की उपेक्षा से. वृंदा लगभग हर समय औनलाइन रहती थी लेकिन आज ‘माई स्टैटस’ पर अपनी यह दुखभरी पोस्ट 10 बजे के आसपास डाल कर औफलाइन हो गई. मैं यह सोच कर कि औफलाइन होने के अनेक कारण हो सकते हैं, मैं अपने काम में व्यस्त हो गया. 1 बजे के आसपास किसी ने डोरबैल बजाई. मैं ने खिङकी से झांक कर देखा तो मेरे होश उड़ गए. नीचे दरवाजे के सामने 2 पुलिसवाले खड़े थे. ‘आखिर मेरे घर पुलिस क्यों आई थी, मैं ने तो अपनी जानकारी में कोई अपराध नहीं किया था. फिर पुलिस का मेरे घर पर क्या काम,’ यही सब सोचता हुआ मैं दरवाजा खोलने पहुंचा. दरवाजा खोलते ही उन में से एक बोला, “क्या आप ही मोहन हैं?’’
‘‘जी हां, बताइए.’’
‘‘आप को एक तफ्तीश के लिए किरतपुर थाने बुलाया गया है. इंस्पैक्टर साहब को आप से कुछ सवालात करने हैं.’’
‘‘लेकिन मामला क्या है?’’
‘‘यह सब तो इंस्पैक्टर साहब ही बताएंगे. हम से तो यह कहा है कि आप को थाने ले आएं. आप तैयार हो कर हमारे साथ चलें.’’
पुलिस के मेरे घर आने की खबर पूरे मोहल्ले में आग की तरह फैल गई. हर कोई यह जानने को उत्सुक था कि मैं ने कौन सा अपराध किया है. इस से पहले कि मेरे घर मजमा लगता, मैं ने अपने परिवार का ढांढ़स बंधाया और उन 2 पुलिसवालों के साथ थाने की ओर चल पड़ा.
थाने में इंस्पैक्टर के सामने मुझे पेश किया गया. उन्होंने मुझ से पूछताछ शुरू की.
‘‘आप लेखक हैं?’’
‘‘जी हां.’’
‘‘क्याक्या लिखते हैं?’’
‘‘कहानियां, कविताएं, व्यंग्य आदि.’’
‘‘और रुमानियत भरी बातें भी?’’ इंस्पैक्टर ने प्रश्नवाचक दृष्टि से मेरी ओर देखते हुए कहा.
‘‘जी कहानी के हिसाब से.’’
‘‘और वाट्सऐप पर भी रुमानियत का खूब तङका लगाते हो,’’ इंस्पैक्टर ने कटाक्ष किया.
‘‘जी, मैं समझा नहीं.’’
‘‘अभी समझाता हूं. वैसे आप बड़े सज्जन बनने की कोशिश कर रहे हैं. फिर यह क्या है?’’
यह कहते हुए इंस्पेक्टर ने वृंदा की पोस्ट और मेरे कमैंट्स की डिटेल मेरे सामने रख दी.
‘‘आप को पता है लेखक महोदय, आप के कमैंट्स के कारण वृंदा ने सुबह 11 बजे के आसपास जहर खा कर जान देने की कोशिश की. आप एक शादीशुदा महिला से प्रेम की पींग बढ़ा रहे थे. आप को शर्म आनी चाहिए अपनेआप पर. आप के खिलाफ वृंदा को आत्महत्या के लिए उकसाने का केस बनता है.’’
यह सुनते ही मेरी हालत पतली हो गई. फिर भी मैं ने हिम्मत जुटाते हुए पूछा,‘‘इंस्पैक्टर साहब, ऐसा कैसे हो सकता है? मैं तो आज तक उस से मिला भी नहीं.’’
‘‘देखिए, अभी तो वाट्सऐप डिटेल देखने के बाद शक के आधार पर आप को यहां बुलवाया गया है. अभी वृंदा बेहोशी की हालत में है. उस के होश में आने पर उस के बयान के आधार पर ही यह निर्णय लिया जाएगा कि आप को छोड़ें या गिरफ्तार करें. आप के सम्मान के कारण आप को लौकअप में बंद नहीं कर रहा हूं, मगर वृंदा के बयान होने तक आप पुलिस की निगरानी में थाने में ही रहेंगे.’’
स्पष्ट था कि मेरी इज्जत का जनाजा पूरी तरह से निकल चुका था. मैं जानता था कि मेरा परिवार कितनी तकलीफ में होगा. नातेरिश्तेदारों और मोहल्ले वालों को भी भनक लग चुकी थी कि किसी औरत से प्रेम प्रसंग के मामले में मुुझे थाने में बैठा कर रखा गया है. विरोधियों की तो बांछें ही खिल गई थीं. उन के लिए तो मैं काला सियार था.
लगभग 3 बजे शाम को वृंदा बयान देने के काबिल हुई. इंस्पैक्टर ने खुद अस्पताल जा कर उस से जहर खाने का कारण पूछा. मेरी सांसें अटकी हुई थीं कि वृंदा न जाने क्या बयान दे. अगर उस ने मेरा नाम भी ले लिया तो समझो मेरी इज्जत मिट्टी में मिल जाना जय है. थाने में बैठेबैठे मेरी रूह कांप रही थी. हवालात जाने का डर लगातार सता रहा था. इंस्पैक्टर साहब वृंदा का बयान ले कर अस्पताल से थाने आए. मुझे देख कर मुसकराए और कहा, “मोहन बाबू, आप बच गए. हमें क्षमा करना जो आप को इतनी तकलीफ दी. वृंदा घरेलू कलह से तंग थी जिस के कारण उस ने जहर खा कर जान देने की कोशिश की. अब आप घर जा सकते हैं, पुलिस आप को तंग नहीं करेगी.’’
‘‘लेकिन इंस्पैक्टर साहब, मेरे सम्मान पर जो आंच आई है, उस का क्या?’’
‘‘इस के लिए मैं मोहन बाबू आप से फिर से क्षमा चाहता हूं. लेकिन शक के आधार पर पुलिस को कई बार ऐसी काररवाई करनी पड़ती है. आप इस पर एक अच्छी सी कहानी लिख सकते हैं जिस से औरों को सबक मिले कि महिलाओं की पोस्ट पर कमैंट करने में सावधानी बरतें,” यह कह कर इंस्पैक्टर साहब मुसकराए. बदले में मैं भी मुसकरा पड़ा. कहानी लिखने की मेरी तलाश पूरी हो चुकी थी.
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