कैसी बराबरी "
कुछ नहीं हो पाया तो पुश्तैनी खेती ही करूंगा , मगर हिस्से की " बात मैं नहीं करूंगा । " मयंक की आवाज में मजबूती थी ।
" पूरे पांच महीने हो गए , नौकरी मिल ही नहीं रही । मयंक , तुम पापा से अपना हिस्सा क्यों नहीं मांगते ? आज नहीं तो कल आखिर तो बंटेगा । " त्योरियों पर बल दिए रुचि ने अपने पति से कहा ।
" मुझसे यह नहीं होगा । " किसी सोच में डूबा हुआ - सा मयंक बोल पड़ा । “ तुमसे नहीं होगा , ओके । " खीझती हुई रुचि बोली , " तो मैं ही बोलती हूं फिर । दो - दो बच्चे , बीवी- तुम्हारा भी तो परिवार है । क्या तुम्हें टेंशन नहीं होती ? " उसके माथे की सलवटें कुछ और बढ़ गई थीं । वह फिर बुदबुदाई , " पता नहीं क्या होगा ? " " मैं कोशिश कर रहा हूं न , तुम देख ही रही हो । तुम पढ़ी - लिखी होकर क्या अभी की परिस्थितियों से अनजान हो ? " मयंक शांत - स्थिर स्वर में बोला , " और फिर हम तो खुशनसीब हैं , जो न तो हमें घर के किराए की चिंता करनी है , न ही किराने की ।
" गर्व मिश्रित संतोष की लहर थी उसके चेहरे पर , " पापा ने कहा ही है , जब तक ठीक काम नहीं मिलता , चिंता करने की जरूरत नहीं है यह उनका बड़प्पन है , मगर मैं भी उन पर इस उम्र में बोझ नहीं बनूंगा । कुछ नहीं हो पाया तो पुश्तैनी खेती ही करूंगा , मगर हिस्से की बात मैं नहीं करूंगा । " मयंक की आवाज में मजबूती थी । " तुम्हें बहुत टेंशन हो रही है तो क्यों न तुम अपने पापा से अपने हिस्से की बात ... " " मयंक ! ” रुचि की आंखों में उबाल - सा नजर आया ।