सम्मान और हक की एक 'परंपरा'
बुंदेलखंड में स्त्री को सम्मान देने की परंपराएं खूब प्रचलित हैं । शायद यही एकलौती ऐसी जगह है , जहां ताजिंदगी लड़कियों के पैर पूजे जाते हैं । यहां जन्मी लड़कियां अपने मायके में कभी किसी के पैर नहीं छूतीं । गलती से लड़की का पांव किसी से भी छू जाए तो वह व्यक्ति चाहे छोटा हो या बड़ा , पलटकर उस लड़की के पैर जरूर छुएगा और कहेगा- ' हमें पाप मत लगाओ !
' सिर्फ यहीं पर ऐसी परंपरा है , जहां बेटियों को ताउम्र शुरू से लेकर मृत्युपर्यंत कन्या की तरह पवित्र माना जाता है । इसी तरह की एक और शानदार परंपरा हमारे बुंदेलखंड में प्रचलित है , जिसके निर्वहन में केवल लड़कियां ही बढ़ चढ़कर आगे बढ़ती हैं और उनसे आशीर्वाद लेने की तमन्ना हर कोई करता है । अक्षय तृतीया को हमारे बुंदेलखंड में ' अकती ' कहा जाता है , जब लड़कियां कपड़ों से सजी धजी गुड़ियां सजाती हैं और गौरा देवी की प्रतिमा को बरगद या पीपल के पेड़ तले रखती हैं और वहां पर सोन ( पत्तों और चने को मिलाकर बनने वाली सामग्री को सोन कहते हैं ) तैयार करती हैं ।
वहां से लौटते हुए पंक्तिबद्ध दर्जनों लड़के और पुरुष उनके हाथों सोन ( पत्तों और चने को मिलाकर बनने वाला सोन ) लेकर खुद को भाग्यशाली समझने लगते हैं , अर्थात कन्या के हाथों सोन लेकर उनके पांव छूकर आशीष लेना कोई नहीं भूलता । हरेक की चाह होती है कि कन्या के हाथों सोन लेने से हमारे खेतों में भी ऐसे ही धन - धान्य की वर्षा होती रहेगी । सोन बांटते हुए हर लड़की प्रसन्न होती है और वह घर - घर जाकर खुशी - खुशी सोन बांटती रहती है ।
सोन बांटते हुए हरेक से पैर छुआने की यादें मेरी स्मृति में अभी तक दर्ज हैं जीवन के अगले छोर पर यात्राएं किसी के लिए रोमांचक होती होंगी , पर मुझे अपने जीवन में इतनी यात्राएं करनी पड़ी हैं कि मेरा ट्रेन या हवाई यात्राओं , दोनों से मन भर गया है । अक्सर काम से इतनी यात्राएं चाहे - अनचाहे करनी पड़ों कि तन और मन , दोनों में थकान भर जाती है । वही भीड़ - भाड़ , वही सामानों से लदे - फदे चेहरे , सामानों की देख - रेख करते लोगों की आवाजाही के बीच अपनी किताबों - पत्रिकाओं के साथ अकेले किनारे बैठे अपने विचारों संग शून्याकाश में विचरते हुए दुनिया को लेकर असंगत प्रश्नचिह्न उठते रहते । वैसे मेरी स्मृति में ये भी दर्ज हैं ।