पहाड़ का दुख kavita in hindi
देवदार , बांज या चीड़ जैसे
पहाड़ के प्रतीक पेड़
इन दिनों बहुत कम हो चले हैं यहाँ
मगर झरने बेशुमार हैं
कोई ऐसा जैसे कोई अल्हड़
हंस दे दिल खोलकर बिन बात
किसी की पतली धार ऐसी
जैसे आबादी से दूर
कोई संन्यासी रो रहा हो
सुबक सुबककर
कभी हुआ करते थे ।
ये झरने स्रोत पानी के
इन दिनों ये आंसू है पहाड़ के
उनका सीना चीर बनाई
जा रही
सड़कों पर अंधाधुंध दौड़ती
गाड़ियों के
शोर और धुओं से इन दिनों
हांफने लगे हैं पहाड़
पिघल रहे हैं हिमखंड
उबल रही है नदियां जहां - तहाँ
कभी झरनों और उबलती
नदियों के
मीठे पानी को
अंजुरी भरकर देखना
छलक कर बाहर आ जाएगा
पहाड़ का दुख ।