बरसो रे बरसो बदरा
उमसी हुई अब शामें बीती ,
आए कजरारे - कजरारे बादर
हवा के झूलों पर झूला झूलें
तान के दिनकर पर चादर
थोड़ा - थोड़ा भीग गया
गर्मी से अकुलाया मन
गुमसुम गुमसुम जीवन था
प्राणी जगत शीतल तन - मन
भानु जग में आग उगलता
तेवर उसके है मध्यम
बादर ने जो ली है अंगड़ाई
निकला दिनकर का दमखम
गौरैया कल धूल लोटी थी
शुभ सुखद संदेशा लाई थी ।
धरती पर बरसेगा मोती
भूमि लोट - लोट बतलाई थी
दादुर अब कर रहे तैयारी
रात भर स्वागत गान गाएंगे ।
कब से कर रहे प्रतीक्षा देखो ,
अब टर - टरा करके बताएंगे ।
धरती पर गिरती है बूंदे
सौंधी - सौंधी महक उठ आई
झमाझम बरसो रे बदरा
छम - छम नृत्य ऋतु आई ।