पूजा गुप्ता मिर्जापुर
बाल्यकाल से लेकर युवावस्था तक जीवन के दो अध्याय एक सामान्य व्यक्ति जी लेता है, लेकिन युवावस्था से लेकर बुढ़ापे तक का जो सफर होता है, उसमें कई उतार 'चढ़ाव आते हैं। माता-पिता, बच्चों को अच्छी परवरिश, अच्छा खान-पान, अच्छा स्कूल प्रदान करते हैं। वे इस उम्मीद में जीते हैं कि जब बच्चे बड़े होंगे तो उनको भी सुखी रखेंगे। लेकिन कई बार बदलती दुनिया में बच्चे बड़े होते हैं तो उनकी आकांक्षाएं बढ़ जाती हैं। तब माता-पिता को उनके हिसाब से चलना पड़ता है। एक उम्र के बाद माता-पिता चाहते हैं कि उनको बच्चों का ज्यादा समय मिले, लेकिन बच्चों के पास इतना समय नहीं होता कि वे उनको सहारा दे सकें। कई बच्चे तो माता पिता को सुखी जीवन देते हैं, लेकिन कुछ को अपने ही माता पिता बोझ लगने लगते हैं। यहां तक कि वे माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ आते हैं। क्या वास्तव में माता-पिता इतना बड़ा बोझ हो जाते हैं कि बच्चे अपनी खुशियों में उन्हें शामिल करना उचित नहीं समझते? जिन बच्चों के लिए माता-पिता पूरी जिंदगी न्योछावर कर देते हैं, क्या उन बच्चों का फर्ज नहीं कि वे माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा बनें! बस, यही सारे माता-पिता सोचते हैं कि उनका बेटा या
बेटी बड़े होंगे तो क्या वे उनका साथ देंगे? यही असुरक्षा की भावना उनके मन में घर कर जाती है, जो शायद जायज भी है। लेकिन जो बुजुर्ग का सम्मान नहीं करते हैं और उनका सहारा नहीं बनते हैं, कभी उनका भी ऐसा समय आएगा, जब बच्चे उनका साथ और सहारा नहीं बनेंगे, क्योंकि वे इसी माहौल से सब सीखेंगे। इसलिए अपने बुजुर्गों का सम्मान करें। जब तक जीवित हैं, उनका आशीर्वाद लें। पास बैठकर उनकी तकलीफों को सुनें। यदि आप अपने बुजुर्गों के साथ थोड़ा-सा हंस-बोल लेंगी तो उन्हें भी बेहद खुशी होगी। वे आधारशिला हैं, उनसे जीवन के कटु अनुभव सीखें। उनके मन में पल रहे डर को सच मत होने दें। वैसे भी यह घर आपके माता-पिता का है तो फिर आप कौन हैं उनको उनके घर से निकालने वाले?
जब आप छोटी थीं तो हर मुश्किल हालात में माता पिता ही आपके साथ खड़े थे। आज जब आप बड़ी हो गई हैं तो अपने माता-पिता को प्रेमपूर्वक रखें। ये बुजुर्ग ही आपको सही राह दिखाएंगे और आपकी मंजिल तक पहुंचाएंगे। उनके आशीर्वाद से आप अपने बच्चों को भी खुशियां दे पाएंगी। इसलिए उन्हें अनाथ आश्रम न दें, बल्कि उन्हें अपना घर दें, जो उनका खुद का है।